पहला अंक, कहानी-रतलाम मेडिकल काॅलेज की…(गतांकसे आगे). (1)
विगत दिवस रतलाम मेडिकल काॅलेज का स्व. डाॅ लक्ष्मीनारायण जी पांडे का नामकरण होते ही यह एक बार फिर सुर्खियों में आया।
आए दिन काॅलेज से संबंधित समाचारों में जनता में इसकी स्थापना के श्रेय को लेकर कई प्रकार के दावे-प्रतिदावे किये जाते रहे है। कॉलेज खोलने की मांग की आवाज उठाने से लेकर आजतक की 50 साल के इसके संघर्ष के घटनाक्रम के पिछे किन लोगों की समय समय पर क्या-क्या भूमिका रही और किस-किस का क्या-क्या योगदान और प्रयास रहा, आज की नई पीढ़ि को सच्चाई और वास्तविकता से अवगत कराने का यह एक अच्छा अवसर औेर समय है। आईये जानते है इसकी सप्रमाणिक संपूर्ण तथ्यात्मक जानकारी…
बात वर्ष 1969 की है। सरकार द्वारा गठित ताराचंद्र आयोग की सिफारिश अनुसार प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक मेडिकल कॉलेज खोले जाने की केन्द्र शासन की योजना के अंतर्गत विश्वविद्यालय क्षेत्र का बड़ा शहर होने के कारण से रतलाम ने प्रमुख दावेदारी करी l रतलाम की जनता ने उज्जैन की बजाए रतलाम में मेडिकल कॉलेज खोलने की मांग रखी।
सन 1969-70 में जब संविद सरकार के पतन के बाद राज्य मंत्री मंडल में मुख्यमंत्री पं. श्यामचरण शुक्ल ने रतलाम के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं विधायक डॉ. देवीसिंह को स्वास्थ्य मंत्री की शपथ दिलाई तब रतलाम की जनता इनसे इस कॉलेज को रतलाम में खुलवाने की उनसे उम्मीद लगाए बैठी थी। रतलाम की राजनीति में श्री रामेश्वर अग्रवाल उनके धुर विरोधी थे। काॅलेज की छात्र राजनीति बडी दिलचस्प होती थीl गैर विद्यार्थीयों तो ठीक, शहर की जनता भी कालेज चुनाव और काॅलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों मे बढ चढकर हिस्सा लेती थी।
वर्ष 1969 का कॉलेज का शैक्षणिक सत्र अभी आरम्भ होना था। इसके पूर्व ही दोनों छात्र संगठन विद्यार्थी यूनियन व विद्यार्थी मोर्चा के नेताओं को, श्री अग्रवाल ने, जो कि यूनियन व मोर्चा दोनों पार्टियों से संबंद्ध रहे, एक जुटकर मेडिकल कॉलेज के आंदोलन की नींव रखी। उस समय की छात्र राजनीति में दोनो पार्टियों का मुख्य एजेन्डा काॅलेज में नवीन कक्षाएं प्रारम्भ करवाना और शहर में अन्य शैक्षणिक गतिविधियां प्रारंभ करना रहता था।
शहर में छात्र एकता का उस समय एक ऐसा वातावरण निर्मित हुआ, जिसकी परिणती में एक जबरदस्त छात्र आंदोलन हुआ। कुछ दिनों बाद वह छात्र आंदोलन रतलाम के शैक्षणिक पिछड़ेपन (जिसमें एग्रीकल्चर कॉलेज की मांग भी थी) और अब रतलाम के औद्योगिक पिछड़ापन तथा रोजगार की समस्या को लेकर ‘‘छात्र संघर्ष समिति‘‘ के बैनर तले सम्पूर्ण रतलाम का जन आंदोलन बन गया। इस आंदोलन ने रतलाम में कई नेताओं को जन्म की दिया। उस समय के युवाओं ने लम्बे समय तक रतलाम की राजनीति में अगुवा रहकर आज पर्यन्त नेतृत्व करते रहे है। क्रमश: