अल्पसंख्यक कौन :- 27 साल पहले झालानी ने दी थी परिभाषा
रतलाम। आजादी के बाद से अब तक देश एक समस्या अल्पसंख्यकवाद से उत्पन्न हुई समस्याओं से भी जूझ रहा है। हाल के दिनों में सर्वोच्च न्यायालय अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा तय करने और आबादी के लिहाज से राज्यवार या जिलेवार अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने सम्बन्धी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है और राज्य सरकारों से जवाब मांगा गया है। इस बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे को भारत गौरव अभियान के अनिल झालानी ने आज से 27 वर्ष पूर्व वर्ष 1997 में ही उठाते हुए जिलेवार अल्पसंख्यक दर्जा तय करने की मांग उठाई थी।
भारत की राजनीति पिछले 75 वर्षों से अल्पसंख्यक वोट बैैंक और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण जैसे मुद्दों के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। पूïर्ववर्ती सरकारों ने दशकों तक देश की दूसरी सबसे बडी आबादी मुस्लिम समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय में दूरियां बनाकर रखी। लेकिन अगर भारत गौरव के अनिल झालानी द्वारा दिए गए जिले वार अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने के सुझाव पर अमल कर लिया गया होता तो देश में सौहार्दता और सामाजिक सामंजस्य, अनेक समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता।
उल्लेखनीय है कि भारत गौरव के अनिल झालानी ने अपने ‘ स्वांतः सुखाय’ अभियान के तहत जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने अब से करीब 27 वर्ष पूर्व ही इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए इस मुद्दे को उठाया था,जो आज देश का प्रमुख मुद्दा बन चूका है और सर्वोच्च न्यायलय इस पर विचार कर रहा है। श्री झालानी ने बताया कि उन्होंने फरवरी 1997 में देश के कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों को अपना यह सुझाव भेजा था,जिसे प्रकाशित भी किया गया था। श्री झालानी ने अपने सुझाव पत्र में कहा था कि देश में अल्पसंख्यक भावना के पीछे जो सद्भावना की सुगन्ध थी,उसे राजनैतिक तुष्टिकरण ने दुर्गन्ध में बदल दिया है। सिख जैन,बौद्ध हिन्दू समाज के अंग होते हुए भी पृथक माने जाने के लिए बाध्य किए जा रहे है।
दुनिया के करीब 175 देशों की आबादी 15 करोड से भी कम है,लेकिन हमारे एक ही देश में 15 करोड से अधिक संख्या में होने पर भी मुसलमानों को अल्पसंख्यक कहा जाता है। देश में बोहरा और ईसाई समाज को कभी कोई समस्या नहीं रही,पर इन्हे अल्पसंख्यक कह कर मुख्यधारा से दूरी का एहसास कराया जाता है। श्री झालानी के अनुसर अल्पसंख्यक के पीछे किसी छोटे समुदाय की भाषा, धर्म, संस्कृति, रीति रिवाज, परंपरा आदि की सुरक्षा और संरक्षण का राजकीय दायित्व के बोध से होता है अतः आपने अपने पत्र में लिखा था कि इन सभी वर्गों को पूरे देश में एक साथ अल्पसंख्यक मानने की बजाय इसका निर्धारण प्रत्येक जिले में समुदाय विशेष की जनसंख्या पर आधारित होना चाहिए। जिस जिले में जिस समुदाय की जनसंख्या दस प्रतिशत से कम हो वह समुदाय उस जिले का अल्पसंख्यक समुदाय माना जाना चाहिए। यदि ऐसा किया जाता है,तो कश्मीर में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिल जाएगा और पूर्वोत्तर में ईसाई समुदाय अल्पसंख्यक नहीं माना जाएगा। महाराष्ट्र के कई जिलों में बौद्ध तथा उत्तर प्रदेश,बिहार और बंगाल के कई जिलों में मुसलमान ज्यादा संख्या होने के कारण अल्पसंख्यक नहीं रह जाएगा।
श्री झालानी के सुझाव के मुताबिक किसी जिले में जनसंख्या के आधार पर वास्तविक अल्पसंख्यक ही अल्पसंख्यक कहलाएंगे और अल्पसंख्यकों के प्रति सदभावना की असली तस्वीर हमारे सामने होगी। श्री झालानी के इस पत्र को कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने प्रमुखता से स्थान भी दिया था। श्री झालानी के इस सुझाव के करीब 27 वर्ष बाद अब देश की सर्वोच्च अदालत और देश की सभी सरकारें इसी मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर विचार कर रही है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में देश की सभी राज्यों से जवाब मांगा था,परन्तु कई राज्यों ने अब क अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। इस स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय ने जवाब दाखिल नहीं करने वाले राज्यों पर नाराजगी जताते हुए 6 हफ्ते का अंतिम अवसर दिया है और कहा है कि यदि 6 हफ्तों के भीतर जबाव दाखिल नहीं किया गया तो इन राज्यों पर दस दस हजार का जुर्माना किया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि अब तक देश में अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा निर्धारित नहीं की गई है। इन याचिकाओं में राज्यवार या जिलेवार अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने की मांग की गई है और यह तथ्य भी सामने आया है कि देश के छ: राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके है। यहां यह तथ्य भी विचारणीय है कि देश में अल्पसंख्यक शब्द की गलत परिभाषा के चलते देश को राजनैतिक तुष्टिकरण जैसी कई समस्याओं का सामना करना पडा है। यदि अल्पसंख्यक शब्द की वास्तविक परिभाषा लागू कर दी जाएगी देश में सद्भावना का अच्छा वातावरण निर्मित होगा।