’कहानी(23)-रतलाम मेडिकल काॅलेज की...........(गतांग से आगे)....... ’
दिनांक 29.12.2023
’कहानी(23)-रतलाम मेडिकल कॉलेज की...........(गतांक से आगे)....... ’
विगत अंक में यह उल्लेख आया था की विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की आयोजित होने जा रही कार्य परिषद की बैठक में रतलाम में मेडिकल कॉलेज खोलने का विषय एजेंडा में सम्मिलित कर लिया गया है। कॉलेज खोलने की आशा की कड़ी में यह एक ठोस कदम था।
मध्य प्रदेश में श्री बलराम जाखड़ राज्यपाल थे। उनसे रतलाम के मूल निवासी इंदौर स्थानांतरित हो चुके श्री अजय चौरडिया से अच्छा संबंध व संपर्क था। राज्यपाल की ओर से विश्वविद्यालय की कार्य परिषद के सदस्य नियुक्त थे। उन दिनों विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति के रिक्त पद पर नियुक्ति के लिए जद्दोजहद चल रही थी। कई नाम और विद्वान इसकी दौड़ में थे। ऐसे में जोड़ जुगाड़ कर डॉक्टर राम राजेश मिश्रा जो की पूर्ण रूप से इस पद के योग्य पात्र भी नहीं थे, वह कुलपति इस पद पर बन बैठे थे पद हासिल कर कहा जाता है कि इस नियुक्ति में श्री अजय चोरउिया की भूमिका थी। जिसका उपकार उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय कार्यप परिषद में रतलाम में जब मेडिकल कॉलेज खोलने का प्रस्ताव पारित करके चुकाया।
ओर लगे हाथ इसके साथ श्रीमती तुबू देवी चौरडिया मेडिकल कॉलेज का नाम प्रस्ताव पारित कर उन्होंने अपनी नियुक्ति में श्री अजय चैरडिया द्वारा निभाई गई भूमिका का भार उतार दिया।
यह समाचार तीन-चार दिन बाद सुगबुगाहटों के बीच रतलाम पहुंचा। क्योंकि सब जानने को जिज्ञासु थे, की कार्य परिषद की बैठक में आखिर निर्णय क्या हुआ। तब अंदर खाने से खबर आई की न केवल मेडिकल कॉलेज खोलने का प्रस्ताव पारित हो गया है बल्कि (भले ही कालेज का अभी कोई आता पता ना हो) परंतु नामकरण पहले ही कर दिया गया। कहावत सिद्ध हुई कि ‘‘गांव बसा नहीं और....... पहले ही आ गए।’’
अपुष्ठ खबरों के साथ यह समाचार शहर में तेजी से फैला और सब तरफ रोष दिखाई दिया। इसकी शहर में बहुत तीखी प्रतिक्रिया यह हुई कि सबके मुह से एक ही स्वर से आवाज निकली कि जिले के लिए प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज योजना ने अपने शैशवकाल में ही दम तोड़ दिया। कॉलेज स्थापित करने का निर्णय लेने तक तो ठीक था, किंतु ‘‘टीबू बाई चौरडिया‘‘ मेडिकल कॉलेज नाम रखने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसके बारे में ना दानदाताओं से चर्चा की गई ना ही जिला प्रशासन से कोई संपर्क किया गया। ऐसे में किसी व्यक्ति विशेष के नाम से मेडिकल कॉलेज खोलने का प्रस्ताव अन्य दानदाताओं को कैसे गवारा हो सकता था ऐसी स्थिति में दानदाताओं ने मेडिकल कॉलेज खोलने के अपने प्रयासों से हाथ खींचना शुरू कर दिए। मेडिकल कॉलेज की महती योजना ने अपने गर्भ काल में ही दम तोड़ दिया।
जिला कलेक्टर जी के श्रीवास्तव ने अपने कार्यकाल का पदभार ग्रहण लेने के बाद से मेडिकल कॉलेज खोलने के प्रयास शुरू कर दिए थे। जिसके लिए उन्होंने कई दानदाताओं से चर्चा कर करोड़ों रुपए मेडिकल कॉलेज में दान देने हेतु तैयार भी कर लिया था। मेडिकल कॉलेज योजना के लिए स्वामी बुद्धदेवजी महाराज ने भी आर्थिक सहयोग देने की घोषणा कर इसके बनने की संभावना को बल दिया था। इसी के साथ बोहरा समाज व अन्य समाजों के भी कई प्रतिष्ठित लोग मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए आर्थिक सहयोग देने को आगे रहे थे। जिला प्रशासन ने शहर को मिलने वाली सौगात को अंतिम रूप देने के लिए विक्रम विश्वविद्यालय को अपने साथ जोड़ लिया था। तथा विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ राम राजेश मिश्रा ने जिलाधीश से दो बार बैठक कर चर्चा भी की थी। लेकिन विक्रम विश्वविद्यालय ने अपने उतावलेपन में एकदम आगे बढ़कर अपनी कार्य परिषद की बैठक में एक व्यक्ति विशेष के नाम का कॉलेज का नामकरण के लिए प्रस्ताव पारित कर डाला। दानदाताओं ने नाम के इस विवादों को लेकर पूर्व में मेडिकल कॉलेज के लिए मालवा मेडिकल कॉलेज नाम प्रस्तावित किया था। जो की सही भी था । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं थी। लेकिन ऐसा ना कर व्यक्ति विशेष के नाम का प्रस्ताव मेडिकल कॉलेज जैसी महती योजना को खटाई में डाल दिया गया है। जिले वासियों के लिए लंबे अरसे से जारी इस मांग ने अपना आकार लेने से पहले शिशु काल में दम तोड़ दिया।
इस पर जब जिलाधीश से पूछा गया तो उन्होंने इस प्रकार की किसी भी जानकारी उन्हें नहीं होना बताया तथा नामकरण के संबंध में उनसे कोई पूर्व स्वीकृति प्राप्त होना भी नहीं होना बताया। और अपनी पूर्ण अभिज्ञता जाहिर करी। लोगों की प्रतिक्रिया से जिलाधीश महोदय को बहुत निराशा हाथ लगी।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ राम राजेश मिश्रा से जब स्थानीय लोगों द्वारा संपर्क स्थापित कर इस संबंध में पूछा गया कि नामकरण का निर्णय आखिर किस प्रकार पारित हुआ जिस परकुलपति का जवाब था कि कमेटी में 60-70 लोग रहते हैं अतः या प्रस्ताव किसने रखा और कैसे पारित हुआ यह बताया जाना संभव नहीं है।
इस प्रकार यह लगभग तय हो चुका था कि किसी व्यक्तिगत नाम से कॉलेज खोलने की स्थिति में कोई भी दान देने को तैयार नहीं होंगे, तब चाहे जिला प्रशासन लाख प्रयास करें इस मुहीम में लगे लोग किसी को भी यह गले उतारने के लिए सक्षम नहीं थे। फिर इस बिगडे माहौल को रफादफा करने और मौके की नजाकत को देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अनिल झालानी(लेखक) व साथी शब्बीर डा सन द्वारा औपचारिकता निभाते हुए मामले को संभालने की कोशिश की। और एक विज्ञप्ति जारी कर विश्वविद्यालय द्वारा पारित प्रस्ताव मेडिकल कॉलेज खोलने के निर्णय पर संतोष जाहिर करते हुए कुलपति डा रामराजेश मिश्र को धन्यवाद दिया।
कलैक्टर श्री जी के श्रीवास्तव का IAS अवार्ड पारित हुए लंबा समय गुजर चुका था और उनका पदोन्नति का समय आ चुका था। अब यह सुगबुगाहट होने लगी की उनका किसी भी समय किसी अन्यत्र स्थान पर पदोन्नति होकर के स्थानांतरण का समाचार आ सकता हं। यह समाचार भी मेडिकल कॉलेज के प्रयासों के दम तोड़ने के लिए दुख भरा था। इस संबंध में दिनांक 28 दिसंबर 2004 के दिन उपग्रह में श्री विष्णु बैरागी ने एक समाचार भी प्रकाशित किया की ‘‘जिस शब्द का सर्वाधिक जिलाधीश द्वारा रतलाम आने के बाद उल्लेख किया गया वह है मेडिकल कॉलेज। रतलाम में मेडिकल कॉलेज का स्वप्न वही लेकर आए हैं मगर अब तक की प्रगति के हिसाब से लग रहा है कि इसे स्वप्न के रूप में ही छोड़कर जाने वाले हैं। लिहाजा बचे हुए दिनों में श्रीवास्तव इस अधूरे सपनों को मजबूत आधार प्रदान करें।। ताकि आने वाले समय में यह सपना मूर्त रूप ले सकें।’’
इस प्रकार दिसंबर का अंत आते-आते 2004 का वर्ष रतलाम जिले के लिए मेडिकल कॉलेज की संभावना से तथा उसके प्रयास के लिए इतिहास के पन्नों में लिखा गया।
क्रमशः...........
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