’कहानी(20)-रतलाम मेडिकल काॅलेज की...........(गतांग से आगे)....... ’
दिनांक 01.12.2023
’कहानी(20)-रतलाम मेडिकल कॉलेज की...........(गतांक से आगे)....... ’
गत अंक में हमने विस्तार से बताया था कि रतलाम में मेडिकल कॉलेज की स्थापना के संबंध में कलेक्टर श्रीवास्तव द्वारा नए सिरे से पहल प्रारंभ की गई। उसके पश्चात उनके प्रतिदिन निरंतर का प्रयास से श्री बुद्धदेव जी महाराज तथा रतलाम शहर के दानदाताओं, सामाजिक संस्थाओं के साथ-साथ विधायक व सांसद की निधियां से धनराशियों के सहयोग हेतु घोषणाए भी होने लगी थी।
राज्य सरकार द्वारा हॉस्पिटल संचालन करने हेतु एक बड़ी वार्षिक राशि प्रदान की जाती है। उस राशी का व स्थानीय संस्थाओं द्वारा द्योषित निधीयो इनका सबका समावेश कर, इसी अस्पताल परिसर को साथ में लेकर, जिला चिकित्सालय के समीप या दूर किसी स्थान पर कॉलेज की नई बिल्डिंग, हॉस्टल, प्रशासनिक संकुल इत्यादि का निर्माण करने का (मंसूबा )बनाया जाता रहा।
कॉलेज के संचालन हेतु सर्वप्रथम स्थानीय स्तर पर रोगी कल्याण समिति के माध्यम से संचालन करने के विचार पर कार्य प्रारम्भ हुआ। इसी के साथ-साथ किसी ट्रस्ट का गठन करने पर भी विचार जब चल रहा था।
तब इन्हीं बातों पर विचार करते-करते विश्वविद्यालय स्तर पर मान्यता आवश्यक होने से विक्रम विश्वविद्यालय को आगे लाया जाना अधिक व्यवहारिक प्रतीत होने लगा।
उसके परिपेक्ष में मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया को यूनिवर्सिटी द्वारा आवेदन करने के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट की तैयारी प्रारंभ की गई।
और उसी के पालन में आवेदन का प्रारूप का अध्ययन कर उस की पूर्तियां हेतु करने का कार्य प्रारंभ हुआ।
काॅलेज खोलने के आवेदन पत्र के साथ लगने वाले विभिन्न आवश्यकताओं का सूची तैयार की गई।
पूरे अस्पताल के सभी विभागों के सभी उपकरणों, संसाधनों, फर्नीचरों संयंत्र इत्यादि का सूक्ष्म निरीक्षण व गणना कर सूची तैयार की गई।
इस कार्य में सिविल सर्जन, मुख्य चिकित्सा अधिकारी के साथ-साथ सभी विभागों के प्रमुख डॉक्टर-सर्जनों ने हाथ बटाया। इस कार्य मे डॉक्टर तापड़िया की मुख्य भूमिका रही। जिनके सहयोग हेतु अधीक्षक श्री मालवीय, श्री दिनेश आचार्य, श्री वाधवा, श्री खान व हेड नर्स आदि सम्पूर्ण स्टाफ ने कई दिनों तक वार्डो मे घूम-घूम कर और एक-एक वस्तु का भैतिक सत्यापन कर सूची तैयार करने में अथक परिश्रम किया।
इस दरमियान काम करने वाले बहुत से लोगों को यह अच्छी आशा व उम्मीद बनी रहती थी कि संभवत एक दिन यह मेडिकल कॉलेज अवश्य मूर्तरूप ले सकेगा। परंतु उन्ही दिनों वही अनेक लोग ऐसे भी थे जिनको इसमें संशय नजर आता था। साथ ही हमारे द्वारा की जाने वाली मेहनत बेकार नजर आती थी। व इन सब कवायत पर वे हंसी भी उड़ाया करते थे, और कटाक्ष भी करते थे।
बहरहाल यूनिवर्सिटी के माध्यम से आवेदन तैयार करने के प्रारूप की तैयारियां प्रारंभ कर दी गई और कई सेट्स में इन सूचियां का फोटो कॉपी कराई गई (जिसका बिल संलग्न है)।
हम यहां यह उल्लेख करते हुए गौरवान्वित अनुभव करते है कि इस संघर्ष में जो भी व जितना भी साधन -संसाधन का उपयोग हुआ उसमें हम संघर्षकर्ताओं का निजी योगदान रहा। श्री मोहनलाल जी मकवाना जो कि रिटायर्ड कलेक्टरोट अधीक्षक थे उन्होंने भी इन तमाम तैयारीयों में बहुत परिश्रम किया।
जिलाधीश श्रीवास्तव सा. बड़े उत्साह से सब तरफ हाथ पांव मारते रहे। यहां तक कि ट्रस्ट या सोसायटी के अंतर्गत कॉलेज कैसे चल सकता है या क्या वे रतलाम जिला चिकित्सालय को किसी निजी संस्था के साथ जोड़कर कॉलेज चला सकते है इस भावना के चलते पूना स्थित शिक्षाविद् डाॅ डी.वाय. पाटिल से भी दूरभाष पर चर्चा करी।इन्दौर के अनेक सहयोगियों से सम्पर्क साधा।
इन दस्तावेजों में निचे विशेष रूप से वह दस्तावेज भी है जिसके कि आधार पर भारत सरकार द्वारा आने वाले समय में 58 नए मेडिकल कॉलेज खोलने के लिये जो फार्मेट/ढांचा तैयार किय गया जिसके अंतर्गत एक आटोनाॅमस बाॅडी (स्वायतशासी कॉलेज) के रूप में कॉलेज का संचालन किया जाने की योजना बनाने की शुरूआत हुई। (आगामी कड़ियों में इसका एक बार फिर उल्लेख आएगा)