निर्वाचन के अभिनव प्रयोग पर सृजन भारत की भूमिका....
लेखक विचारक - अनिल झालानी
लोकतांत्रिक प्रणाली का आधार निर्वाचन प्रक्रिया है और निर्वाचन प्रक्रिया में मतदाता का महत्व है। भारत जैसे विशाल देश में जहां अनुमानित 90 करोड़ मतदाता चुनाव में अपना मत देते हैं। इस महा अभियान को संचालित करने में निर्वाचन आयोग को बहुत संसाधन जुटाना होते है। प्रत्येक मतदाता को अपना मतदान का अधिकार है । इसलिए उन्हें चुनाव की प्रक्रिया में शामिल करना अनिवार्य है। किंतु मतदाताओं की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को यदि देखें तो कई बार हमें महसूस होता है कि बहुत बयोवृद्ध एवं अशक्त व देश व समाज कि घटनाओं से लगभग निवृत हो चुके मतदाताओं को यदि मतदान से वंचित भी कर दिया जाए तो उम्मीदवार के चयन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। जब समाचार पत्रों में कुछ मतदाताओं को मतदान स्थल तक ले जाने के फोटो प्रकाशित हुए तो हमने एक-एक फोटो को संकलित करना प्रारंभ किया। और निर्वाचन आयोग को इस बात हेतु प्रेरित किया की ऐसे मतदाताओं को या तो निर्वाचन की प्रक्रिया से विरक्त किया जावे या उन्हें घर बैठकर ही मतदान करने की कुछ व्यवस्था प्रारंभ की जावे। इस कड़ी में हमारे द्वारा अपने सुझाव के पक्ष में प्रमाण स्वरूप समय-समय पर अखबारों में प्रकाशित फोटो की कटिंग निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रेषित की जाती रही।
चूंकि संविधान एवंजनप्रतिनिधित्व कानून मे संशोधन किये बिना किसी भी मतदाता को लोकतांत्रिक प्रक्रिया मे भाग लेने से संवैधानिक रूप से वंचित नही किया जा सकता था, अतः निर्वाचन आयोग से इस विषय पर निरंतर ध्यानाकर्षित हेतु हमारे प्रयास आज जब विकल्पिक व्यवस्था के रूप मे ऐसे मतदाताओं से निर्वाचन आयोग घर-घर जाकर मतदान करा रहा है हमें अपने “स्वान्तः सुखाय अभियान“ के अंतर्गत उक्त बात और इस प्रकार के किए गए प्रयास को आम जनता तक पहुंचने में बड़ा हर्ष महसूस हो रहा है।