’कहानी(17)-रतलाम मेडिकल काॅलेज की...........(गतांग से आगे)....... ’
लेखक विचारक – अनिल झालानी।
गत अंक में हमने बताया था कि उस समय जब मेडिकल कॉलेज के स्वप्न को आकार देने की घड़ी आएगी, तब उसको किस संस्था के अंतर्गत संचालित किया जावेगा। इस विषय पर मंथन करने के बाद मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के एस्टेब्लिशमेंट आफ मेडिकल कॉलेज रेगुलेशन का अध्ययन किया गया। तथा 29 सितंबर 1993 के भारत के राजपत्र में प्रकाशित पात्रता के मापदंड को सूक्ष्मता से देखकर इस बात का पता लगाया कि कौन-कौन आवेदन कर सकते है। जिसके अनुसार विश्वविद्यालय,राज्य सरकारे, केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा स्थापित स्वायत्त निकाय, सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम अथवा राज्यों के तदानुरूप अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत समिति तथा भारतीय न्यास अधिनियम के पंजीकृत सार्वजनिक धार्मिक न्यास पात्र होगे। जिनका प्र्रमुख उद्देश्य आयुर्विज्ञान शिक्षा होगा, वही कॉलेज स्थापित करने की अनुमति के लिए आवेदन देने हेतु योग्य होंगे।इसमें यह भी वर्णित था कि प्रस्तावित आयुर्विज्ञान कॉलेज के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त विद्यालय से सम्बद्धता की सहमति प्राप्त कर ली गई हो।
किंतु यह संशय अभी भी बना हुआ था की अंततः योजना का क्रियान्वयन किस प्रकार संभव हो सकेगा। क्योंकि प्राथमिक रूप से सर्वप्रथम राज्य शासन, रोगी कल्याण समिति की नियमावली में आवश्यकतानुसार संशोधन करें। तत्पश्चात रतलाम में धन-संग्रह हो। व उसके पश्चात मेडिकल कॉलेज का योजनानुसार निर्माण प्रारंभ हो। यह सब करवाई अन्ततः करेगा कौनघ् इस पर प्रश्नचिन्ह बना हुआ था। इसी प्रक्रिया के चलते रहने के दौरान बीच-बीच में एक स्वायतशासी निकाय गठित कर उसके अधीन कालेज संचालित करने का भी विचार आया।
उक्त सब कार्रवाइयों को देखते हुए ही रोगी कल्याण समिति के बेनर तले इसके अधीन मेडिकल काॅलेज के संचालन पर विचार आकर अटका। अतः राज्य शासन की स्वायत शासी इकाई मानते हुए उसके नियमावली व संविधान में संचालन का प्रारूप मे मेडिकल कालेज या अन्य शैक्षणिक पाठ्यक्रम भी संचालित होने सम्बन्धी उपयुक्त संशोधन करने का प्रस्ताव पारित करके राज्य सरकार को प्रेषित किया गया।
इसी बीच एक दिन समाचार पत्रों में यह समाचार प्रकाशित हुआ कि पंजीकृत समीतियां चिकित्सा महाविद्यालय, पैरामेडिकल,नर्सिंग कॉलेज, होम्योपैथी कॉलेज चला सकेंगे।उन्हें स्वायत शासी बनाने हेतु मंत्री परिषद द्वारा निर्णय लिया गया है।
उक्त स्थिति में जब यह समाचार देखने में आया तब रतलाम एज्युकेशनल सोसायटी के बने बनाए एवं पंजीकृत सोसायटी ढांचे की याद आई और श्री शिवकुमार जी झालानी के माध्यम से लॉ कॉलेज का जिसके कि वे अध्यक्ष रहे, रतलाम एजुकेशनल सोसाइटी का बायलाॅज मंगाया गया। उसका भी अध्ययन किया गया। किंतु लॉ कॉलेज के बायलाॅज में सिर्फ ‘‘लॉ कॉलेज’’ संचालित करने का ही प्रावधान पाया गया। मेडिकल कालेज का ‘‘मुख्य उद्देश्य‘‘ नही हो सकता था। किसी भी प्रकार के बुनियादी परिवर्तन हेतु समस्त ट्रस्ट बोर्ड के सदस्यों को सर्वानुमति से उसके ‘‘मुख्य उद्देश्यों’’ में परिवर्तन हेतु संकल्प पारित करना आवश्यक था।अतः एक प्रकार से यह विकल्प यही समाप्त हो गया।
अभी यह सब चल ही रहा था कि प्रदेश की राजनीति मे एक नया घटनाक्रम तेजी से घटा और हुबली प्रकरण मे सुश्री उमा भारती जी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। श्री बाबुलाल जी गौड़ प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने। इसका प्रभाव रतलाम मे भी हुआ। श्री हिम्मत जी कोठारी जो कि 1993 में केबिनेट मंत्री रहे, अब इस बार उमाजी ने उन्हें मंत्रीमंडल में स्थान नहीं दिया था। जिससे अब तक जो वे सहज व संतुलित भाव से अपना विधायकी का राजनैतिक समय गुजार रहे थे, अचानक स्फूर्त हुए। वहीं दूसरा प्रभाव यह हुआ कि अब तक श्री जे.के. श्रीवास्तव जो भी करते आ रहे थे, अब आगे राज्य सरकार से उनके प्रयासों पर कोई सहयोग नहीं मिल पाने के कारण कोई रास्ता दिखाई न देता देख, उनके कदम थोड़े-थोड़े रूकने लगे।
अभी तक किए जा रहे प्रयासों में मेडिकल काॅलेज खोले जाने के लिए रोगी कल्याण समिति को आगे रखा गया था पर अब गाड़ी दूसरी तरफ घूमी। और इसी दरमियान जब मेडिकल काउंसिंल से मान्यता की बात उठी, कि मेडिकल कॉलेज की डिग्री कौन देगा ? तब जिलाधीश महोदय ने एक नया मार्ग खोजा। उन्होंने विक्रम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ राम राजेश मिश्रा से संपर्क स्थापित करना प्रारंभ किया। और उनसे निरंतर चर्चा होते-होते हुए श्री मिश्रा को लगने लगा कि उन्हें कोई खजाना हाथ लग रहा है। विश्व विद्याालय को मिलने वाली इस नवीन भूमिका (सौगात) से वे इतने उत्साहित हुए की रतलाम आने में उन्होंने कोई विलम्ब नहीं किया। कलेक्टर से फोन पर लंबी-लंबी चर्चाओं के पश्चात उन्होंने शीघ्र रतलाम पहुंचने का कार्यक्रम बनाया।
क्रमश:
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