एक देश एक चुनाव: सृजन भारत के संयोजक अनिल झालानी की 8 साल की मुहिम रंग लाई, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को जिम्मेदारी देने से लगी पुष्टि की मुहर
रतलाम । देश में राजनैतिक और प्रशासनिक अस्थिरता और बड़े आर्थिक नुकसान की प्रमुख वजह लगातार चुनाव होते रहना है। केंद्र सरकार द्वारा ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के लिए समिति गठित करना इसी समस्या के समाधान की दिशा में बढ़ाया गया महत्वपूर्ण कदम है। इस महत्वपूर्ण समिति का पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद को संयोजक बनाया जाना महज एक संयोग है या कुछ और ?आइये!हम जानते हैं। विशिष्ट बात यह है कि देश में पहला उदाहरण है कि किसी निवृत पूर्व राष्ट्रपति को किसी समिति का सदस्य बनाया गया हो और फिर श्री रामनाथ कोविंद को ही इसका अध्यक्ष बनाया जाना कहीं ना कहीं सृजन भारत द्वारा विगत वर्षों में इस विषय पर निरंतर किए गए पत्र -व्यवहार की भी कोई ना कोई भूमिका अवश्य रही होगी।
वर्ष 2003 में इंदौर के फ्री प्रेस अखबार द्वारा आयोजित एक परिसंवाद में तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री भैरव सिंह शेखावत ने इस बात को उठाया। उसके बाद 2013 में पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम, ने इस विषय पर विस्तार से चर्चा की और इसे राष्ट्र के लिए एक महत्वपूर्ण विषय माना। सन 2015 से जब यह विषय तेजी से उभर कर आया और सरकार इसमें रुचि लेने लगी। कार्मिक लोकशिकायत और विधि व न्याय सम्बन्धी राज्यसभा की स्थाई समिति का गठन डाॅ. ई.एम.एस नजियप्पन की अध्यक्षता मे हुआ जिसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का दायित्व दिया गया। इस प्रसंग पर भारत गौरव अभियन (अब सृजन भारत) के संयोजक अनिल झालानी द्वारा निरंतर पत्राचार की लंबी मुहिम ने सार्थकता से इसे सिद्ध किया व समिति का अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद को बनाया जाना इसकी पुष्टि करता है।
समस्या बताना ही काफी नहीं है, इसका हल क्या है यह बताना ज्यादा महत्वपूर्ण है:-
इस मामले में “ सृजन भारत “ अभियान के संयोजक श्री अनिल झालानी मिसाल हैं। राजनैतिक, प्रशासनिक और सामाजिक सुधार के लिए समर्पित झालानी समस्या ही नहीं बताते, उसके उचित समाधान भी सुझाते हैं। ‘ एक देश -एक चुनाव ’ ऐसा ही समाधान है जिसकी पैरवी वे 8 वर्ष से कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने मुहिम शुरू कर केंद्र सरकार, तत्कालीन राष्ट्रपति, विधि आयोग और भारत निर्वाचन आयोग से निरंतर पत्राचार किया। केंद्र सरकार द्वारा एक देश एक चुनाव के लिए गठित समिति इसकी परिणिति मानी जा सकती है।
जुलाई 2016 में पहली बार विकल्प सुझाकर करी शुरूआत
अनिल झालानी द्वारा 28 जुलाई 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखकर एक छोटे से संबोधन द्वारा एक साथ चुनाव का विकल्प सुझाया था। इसकी प्रतिलिपि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्य निर्वाचन आयुक्त को भी भेजी।
श्री झालानी ने बताया था कि जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार किसी भी रिक्त सीट या विधानसभा या लोकसभा का उप चुनाव 6 माह में कराया जाना आवश्यक है। यदि इसमें संशोधन कर इस अवधि को एक वर्ष या नौ माह कर दिया जाए तो कोई भी विघटित विधानसभा, लोकसभा उपचुनाव और रिक्त विधानसभाओं के चुनाव कुछ महीनों टाले जा सकते हैं। ऐसे में बहुत से चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं।
यहीं नहीं रुकी मुहिम
श्री झालानी की मुहिम यहीं नहीं रुकी, उन्होंने 2 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और विधि एवं न्याय एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद को पृथक से पत्र लिखकर अपने पूर्व मे दिये गए सुझाव पर ध्यान आकर्षित करते हुए समरण कराया और कहा कि यदि संविधान या जनप्रतिनिधित्व कानून यह छोटा सा संशोधन कर दिया जाए तो आने वाले समय मे चुनाव एक साथ- होने लगेेेगे। और चुनाव का बोझ कम किया जा सकेगा। प्रतिलिपि तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री श्री अनंत कुमार के साथ ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त को भी भेजी।
यही बात इस बार 18 अगस्त 2017 को मुख्य निर्वाचन आयुक्त,को भेजे गए पत्र मे कही गई। पुनः 30 अप्रैल 2018 को विधि आयोग के अध्यक्ष को लिखकर सुझाव दिया कि विधानसभा और लोकसभा के मध्य सत्र मे रिक्त होने वाली सीटों या भंग सदनों को एक से 9 महिने तक रोककर व इन्हे आगे पिछे करके, आने वाले चुनावों के साथ ही इनका भी उपचुनाव उनके साथ ही कराया जाए और इस बात के अधिकार चुनाव आयोग को दे दिये जाए तभी जाकर बहुत सारे चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे।
जब एक साथ चुनाव की चर्चाए चल रही थी। उन्ही दिनों हरियाणा, झारखण्ड़, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव भी संभावित थें। अतः यदि सरकार गंभीर है तो इस समय यह कानून बना दिया जावे ताकि यह संभावित चुनाव अन्य आने वाले चुनावों के साथ-साथ हो सके। इस आशय का 26 अगस्त 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह और मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पत्र भेजे। पत्र में स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दोहराए ‘एक देश - एक चुनाव’ के संकल्प का स्मरण कराते हुए हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र के साथ दिल्ली विधानसभा के चुनाव कराने का सुझाव दिया।
17 जुलाई 2020 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री रामनाथ जी कोविंद को पुनः लिखे पत्र में उक्त राज्यों के साथ ही अक्टूबर-नवंबर 2020 में प्रस्तावित बिहार और अप्रैल 2021 में होने वाले बंगाल व असम के चुनावों के साथ कई लंबित उपचुनावों का जिक्र कर जनप्रतिनिधित्व कानून में तत्काल संशोधन की आवश्यकता जताई।
इस बार राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी को सम्बोधित करते हुए 27 दिसंबर 2020के अपने पत्र मे पूर्व पत्रों का हवाला देते हुए इस
सिद्धांत की पैरवी करते हुए कहा कि -सरकार का दायित्व है कि निरंतर प्रशासिक सुधार कार्य समस्याओं का समाधान समय रहते करे और कानूनों को समयानुकुल व व्यवहारिक बनाए रखने हेतु परिवर्तन करे। इस पत्र की प्रति प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री श्री अमित शाह, मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अध्यक्ष विधि आयोग को भी प्रेषित की गई।
हाल ही में 17 अप्रैल 2023 को विधि आयोग के अध्यक्ष सहित सभी को पुनः स्मरण पत्र भेजे गए थे ।
मुहिम को मिली तवज्जो- शुरू हो गई वैधानिक प्रक्रिया
श्री झालानी की मुहिम को सरकार द्वारा गंभीरता से लिए जाने की अधिकारिक पुष्टि संबंधित विभागों और कार्यालयों द्वारा उन्हें दिए प्रत्युत्तर से होती है। 2 दिसंबर 2016 के पत्र के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से “सेक्शन ऑफिसर“ श्री अलोक सुमन ने श्री झालानी को पत्र लिखा। इसमें बताया कि श्री झालानी का सुझाव आवश्यक कार्यवाही के लिए संबंधित विभाग को भेज दिया है। इसके बाद 13 जनवरी 2021 और 4 फरवरी 2021 को विधि आयोग ने भी झालानी के सुझावों के परीक्षण और कार्यवाही जारी होते जाने की जानकारी पत्र भेजकर दी।
यह संयोग तो नहीं हो सकता
अपने स्वन्तः सुखाय अभियान के अन्तर्गत अनिल झालानी इस बात को आमजन के साथ साझा करते हुए हर्षित है कि अंततोगत्वा पिछले दिनों केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति गठित कर दी है। श्री कोविंद जी को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से ही साफ है कि एक देश एक चुनाव को लेकर राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने विशेष प्रयास किए। इस दौरान श्री अनिल झालानी द्वारा उन्हें लिखे पत्रों में दिए सुझावों का जिक्र नहीं हुआ हो, यह संभव नहीं है। झालानी का तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद को इस बारे में लगातार पत्र लिखना और उन्हें ही समिति का अध्यक्ष बनाना महज इत्तिफाक नहीं हो सकता।
कहीं ना कहीं सरकार की इस पहल मे सृजन भारत के इस विषय पर निरंतर हुए उक्त पत्राचार द्वारा किये गए प्रयास की भी भूमिका अवश्य ही रही है।
जिस राष्ट्रीय मुद्दो को लेकर लगातार प्रयास जारी रखी वह मुहीम आज अपने किसी महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंची है। और आशा की जानी चाहिये कि शिघ्र ही उसके सुखद परिणाम से देश लाभान्वित होगा।