लेखकविचारक- अनिल झालानी।जिस प्रकार एक प्राइवेट कॉलोनाइजर होता है उसी प्रकार एक सरकारी काॅलोनाईजर भी होता है। पूर्व में मध्य प्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 लागू होने के पूर्व छोटे बडे प्रायः सभी शहरों में ‘‘नगर सुधार न्यास’’ पूर्व में नगर सुधार न्यास नामक संस्था ही सरकारी कॉलोनी नाइजर के रूप में स्थानीय संस्थाओं के सहयोग के लिए कार्यरत थी। उक्त अधिनियम पारित होने के पश्चात प्रदेश के बड़े शहरों में ‘‘विकास प्राधिकरण’’, मझले शहरों में ‘सुधार न्यास‘ ,तथा विशिष्ट नगरों में विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान लागू हुआ।
रतलाम शहर में रियासतकाल मे ही लगभग 1945 से ‘‘इन्प्रुवमेन्ट महकमा’’ नगर सुधार न्यास की पूर्ववर्ती संस्था के रूप में गठित होने की जानकारी मिलती है। सरकारी कॉलोनी के रूप में रतलाम में स्टेशन रोड, न्यू रोड, पावर ऑफ रोड (सज्जनगंज) उसी समय की योजनाए थी। यह सरकारी स्तर पर नगरीय क्षेत्रों में भूखण्डों को आवंटन की गतिविधि करती थी।
अजंता टॉकीज के आसपास का क्षेत्र ओल्ड ऑफीसर्स कॉलोनी, टीचर्स कॉलोनी (डॉक्टर राधाकृष्णन नगर) उसके पीछे कलीमी कॉलोनी, गोपाल नगर, राजेंद्रप्रसाद नगर, (डाॅ कैलाशनाथ) काटजू नगर, सुभाष(चन्द्रबोस) नगर, (लालबहादुर) शास्त्री नगर, कस्तूरबा गांधी नगर, इंदिरा गांधी नगर, देवरा देव नारायण नगर, अंबेडकरनगर, गांधीनगर, महावीर नगर, अर्जुन नगर, शांति नगर, अमृत सागर कॉलोनी, सैनिक कॉलोनी, प्रेमनाथ डोगरा नगर, (डाॅ श्यामाप्रसाद) मुखर्जी नगर, इंदिरा नगर(करमदी) इत्यादि के रूप में लगभग वर्तमान का आधा शहर पूर्व नगर सुधार न्यास के द्वारा विकसित किया गया है।
पूर्व में नगर सुधार न्यास के शासकीय अधिकारी ही अध्यक्ष और मुख्य कार्यपालन अधिकारी आसीन होते थे। रतलाम नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद पर श्री भागीरथ प्रसाद कलेक्टर के रहते हुए 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह ने अपने विश्वसनीय साथी श्री शिवकुमार झालानी को मध्यप्रदेश में सर्वप्रथम अशासकीय व्यक्ति को इसके अध्यक्ष पद पर नियुक्ति की।
1985 में विधानसभा टिकट मिलने के पश्चात इस पद से उन्होंने इस्तीफा देकर चुनाव लड़ा । उनके बाद श्री रामेश्वर जी अग्रवाल, श्री खुर्शीद अनवर, श्री रघुनंदन जी जोशी आदि अशासकीय अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होते रहे।
1992 में श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के पश्चात भंग हुई प्रदेश की बीजेपी सरकार के पश्चात 1993 में नए विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे। एक दिन चर्चा ही चर्चा में पूर्व (विधायक) मंत्री एवं तत्कालीन रतलाम जिला कांग्रेस कमेटी के जिलाध्यक्ष श्री मोतीलाल जी दवे ने मुझे (अनिल झालानी) बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी के द्वारा यह बताया गया है की संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधन अनिवार्यतः पालन करने की कड़ी में (24.4.93 से प्रभावशील) अब जिला पंचायतों का गठन होगा तथा नगरी स्वायत्तशासी निकायों को बहुत अधिक अधिकार प्राप्त होंगे। आम जनता को अब हर काम के लिये राजधानी नहीं आना पड़ेगा।
हम सबने यह दृश्य देखे है कि प्रदेश भर के कर्मचारी सहित आम जनता, अपने-अपने छोटे-बड़े काम करवाने के लिए भोपाल में डेरा लगाए रहते थे। प्रदेश भर से लोगों की राजधानी में आए दिन आने जाने के कारण से मध्यप्रदेश की विधानसभा भोपाल में मिंटो हॉल के सामने ही टेकरी पर विधायक विश्राम गृह के तीन खंड और आसपास पारिवारिक खंड विधायक विश्रामगृह में अपने अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों से विश्रामगृह भरा रहते थे। तथा के उनके काम के लिए विधायकों के आगे पीछे, वल्लभ भवन, विंध्याचल, सतपुडा आदि कार्यालयों में इधर-उधर समस्त विभागों में अपने-अपने काम की जुगाड़ जमाने के लिए भटकते रहते थे।
इन्ही सब परेशानियों को अध्ययन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जब यह पाया कि केन्द्र से निकला 100 पैसा निचे जाते जाते आम जनता तक उसका 15 पैसे जितना ही लाभ पहुंचता है बाकी सब व्यवस्था में पिस जाता है। तब इसके समस्या के समाधान स्वरूप उन्होंने संविधान संशोधन की रूपरेखा रची और जनभागीदारी बढाने और अधिकारो से लैस करने के उद्देश्य से निकायों को उनका कार्यकाल और निर्वाचन अनिवार्य किय। दिनांक 24 अप्रैल 1993 से पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के पश्चात से यह समस्या लगभग समाप्त हो चुकी है।
इस नए प्रावधान के लागू होने से 1994 में रतलाम सुधार न्यास का अस्तित्व समाप्त हो गया और यह नगर पालिका निगम की एक शाखा विकास प्रकोष्ठ के नाम से इसका संविलयन हो गया। राजीव गांधी सिविल सेन्टर इसी विकास प्रकोष्ठ शाखा की एक वृहद योजना थी।