पेंशन की टेंशन हल हो गई होती अगर भारत गौरव(सृजन भारत) के अनिल झालानी द्वारा दिए गए सुझाव को मान लिया गया होता!
लेखक विचारक
अनिल झालानी।
शासकीय कर्मचारियों के रिटायर्ड होने के बाद दी जाने वाली पेंशन केवल भारत की ही नहीं बल्कि विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है। सरकारें अपनी वित्तीय सीमाओं के चलते पेंशन की व्यवस्था बन्द कर रही है और रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए पेंशन उनके जीवन निर्वाह का आधार है। दूसरी तरफ कर्मचारियों के रिटायर्ड होते जाने से विभिन्न विभागों के कामकाज बुरी तरह प्रभावित होने लगते है। भारत गौरव के अनिल झालानी ने इस समस्या को सुलझाने के लिए करीब आठ वर्ष पहले जो नायाब फार्मूला दिया था,उस पर अगर आज भी अमल किया जाए तो सभी की समस्या का आसानी से निराकरण हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि भारत में सरकारी कर्मचारियों की पेंशन का व्यय इतना बढ चुका था कि कर्मचारियों को वेतन देना तक मुश्किल होने लगा था। सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन राशि बढते जाने के कारण विकास योजनाएं भी बुरी तरह प्रभावित होने लगी थी। इसी समस्या के चलते आखिरकार सरकार ने वर्ष 2004 में पेंशन बन्द करने का निर्णय ले लिया और नियमित पेंशन की बजाय एनपीएस (नेशनल पेंशन स्कीम) चालू कर दी थी। एनपीएस में कर्मचारी के वेतन में से ही नियमित कटौती करके अन्त में सेवानिवृत्ति के बाद उस राशि को पेंशन के रुप में लौटाए जाने का प्रावधान किया गया था।
सरकार की एनपीएस योजना महज झुनझुना साबित हुई और कर्मचारी पुरानी नियमित पेंशन को वापस प्रारंभ करने का दबाव बना रहे है। अभी हाल के चुनावों में ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम एक चुनावी मुद्दे के रुप में सामने आई। विपक्ष ओपीेएस को चालू करने के वादे करने लगा और इसका फायदा भी कुछ राज्यों में विपक्षी पार्टियों को मिला। लेकिन पुरानी पेंशन योजना लागू करने की व्यावहारिक समस्याएं अपनी जगह यथावत है। पुरानी पेंशन स्कीम चालू करने से राज्यों के सामने घोर वित्तीय संकट खडा होना अवश्यंभावी है।
भारत गौरव के अनिल झालानी ने पेंशन की इस विश्वव्यापी समस्या के निराकरण के लिए प्रारम्भिक तौर पर 2005 में तथा बाद में वर्ष 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष एक व्यापक योजना प्रस्तुत की थी। श्री झालानी ने पेंशन की समस्या पर व्यापक दृष्टिकोण से विचार किया। श्री झालानी ने पाया कि जहां एक ओर शासकीय कर्मचारियों के लिए पेंशन,सेवानिवृत्ति के बाद उनकी जीवन रेखा है वहीं राज्यों के लिए पेंशन देना बेहद टेडी खीर है। इतना ही नहीं अपने व्यापक विमर्श में श्री झालानी ने यह भी पाया कि शासकीय विभागों में नई भर्तियां बेहद कम हो रही है और दूसरी ओर कर्मचारियों के सेवानिवृत्त होते जाने से कार्यालयों में कर्मचरियों की संख्या घटती जा रही है। इस वजह से शासकीय कार्यालयों की कार्यक्षमता भी बुरी तरह प्रभावित होने लगती है। जिसका बुरा प्रभाव अन्ततः आम जनता पर पडता है। कर्मचारियों की कमी के चलते आम लोगों के काम काज समय पर पूरे नहीं हो पाते।
श्री झालानी ने अपने विमर्श में यह भी पाया कि बडी संख्या में ऐसे कर्मचारी है,जो सेवानिवृत्ति के समय भी शारीरिक रुप से पूरी तरह स्वस्थ होते है और उनकी कार्यक्षमता भी पूरी होती है,लेकिन सेवानिवृत्ति की आयु तय होने से पूरी कार्यक्षमता होने के बावजूद उन्हे सेवानिवृत्त कर दिया जाता है कई पेंशनधारी कर्मचारी सेवानिवृत्ति के पश्चात या तो कही जाॅब भी कर लेते है या कोई अन्य व्यवसाय अपना लेते है। दूसरी तरफ पूरी तरह स्वस्थ और कार्यक्षमता से भरपूर ऐसे व्यक्तियों पर सेवानिवृत्ति का प्रतिकूल असर पडता है और वे समय से पहले बूढे और अक्षम हो जाते है।
सेवानिवृत्ति और पेंशन से जुडी इस प्रकार की तमाम समस्याओं के हल के लिए श्री झालानी ने एक ऐसी योजना प्रस्तुत की थी,जिससे कि न सिर्फ सरकार की परेशानी दूर हो सकती है, बल्कि कर्मचारियों की पेंशन ना मिलने की समस्या भी दूर हो सकती है। श्री झालानी द्वारा प्रस्तुत की गई योजना में सेवानिवृत्त हो रहे कर्मचारी के दीर्घ अनुभव का लाभ भी सरकार को मिलेगा और कर्मचारी को भी असमय बूढे होने जैसी समस्या से छुटकारा मिल सकेगा। इतना ही नहीं कार्यालयों में कर्मचारियों की कमी होने की समस्या भी दूर हो सकेगी।
श्री झालानी ने अपनी योजना में सुझाव दिया कि शासकीय कर्मचारी की सेवानिवृत्ति तो तय समय पर की जाए परन्तु उसकी सेवाएं समाप्त ना की जाए। इसके जहां शासन पर पेंशन का भार नहीं पडेगा,वहीं पेंशन के बदले अनुभवी वर्कफोर्स भी मिल जाएगा। सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बिना कोई अतिरिक्त भुगतान किए उनके खाली समय का सदुपयोग भी जनहित में किया जा सकेगा।
श्री झालानी द्वारा प्रस्तुत की गई योजना में शासकीय सेवा से सेवानिवृत्ति की आयु 55 वर्ष या अधिकतम तीस वर्ष की सेवा कर दी जाए। इनमेेें से जो भी अधिक हो,वह उसकी शासकीय सेवा की पात्रता हो। ये अवधि पूरी करने के बाद शासकीय कर्मचारी को सेवानिवृत्ति दे दी जाए,लेकिन उसकी शासकीय सेवा बरकरार रखी जाए। यह निरन्तरता की अवधि 75 वर्ष की आयु तक रखी जाए।
इस प्रस्ताव के मुताबिक शासकीय सेवक की वेतन वृद्धि 55 वर्ष की आयु तक चलती रहे,लेकिन 55 वर्ष की आयु पूर्ण होने के बाद वेतन में बढोत्तरी के बजाय घटते वेतन की संशोधित नीति लागू कर दी जाए। सेवानिवृत्ति की आयु के बाद ऐसे कर्मचारी के कार्य का समय भी कम कर दिया जाए। श्री झालानी के सुझाव के मुताबिक 55 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति देने के बाद 60 वर्ष तक की आयु होने तक कर्मचारी का वेतन तो वही रखा जाए, परन्तु काम के घण्टे 8 की बजाय घटाकर 6 घण्टे कर दिए जाए। उसे कुछ अतिरिक्त अवकाश भी दिए जा सकते है। इस दौरान कर्मचारी का वेतन स्थिर रखा जाए।
योजना के मुताबिक कर्मचारी की आयु 60 से 65 वर्ष होने तक उसके कार्य की अवधि को और कम कर दिया जाए। उससे अब 6 घण्टों की बजाय 4 घण्टे ही काम लिया जाए। इस अवधि में उसका वेतन कुछ कम कर दिया जाए। सुझाव के मुताबिक इस अवधि के दौरान कर्मचारी को जितनी पेंशन प्राप्त होती,वेतन उससे 10 या 15 प्रतिशत अधिक रखा जाए। इसी प्रकार 65 से 70 वर्ष की आयु के दौरान उससे सप्ताह में मात्र चार दिन चार-चार घण्टे काम लिया जाए। कुछ अतिरिक्त अवकाश भी दिए जाए। इसी क्रम में 70 वर्ष से अधिक प्राप्त कर चुके कर्मचारियों से सप्ताह में तीन दिन तीन तीन घण्टे का काम लिया जाए और उसे वेतन के बतौर पेंशन राशि से 5 या 10 प्रतिशत अधिक राशि दी जाए।
श्री झालानी की इस योजना से जहां सरकार पर पेंशन की राशि का बोझ नहीं पडेगा,वहीं सेवानिवृत्त होने जा रहे कर्मचारी के सामने भी अकर्मण्यता का संकट खडा नहीं होगा। इतना ही नहीं सरकार को पर्याप्त अनुभवी कर्मचारी उपलब्ध रहेंगे,जिससे कि सरकारी विभागों की कार्यक्षमता भी प्रभावित नहीं होगी। इस प्रकार पेंशनर के रुप में अनुपयोगी हो जाने वाले व्यक्ति की उर्जा का राष्ट्रहित में उपयोग हो सकेगा,सरकारी कार्यालयों की में होने वाले कामों में तेजी आएगी और लम्बित मामलों का निराकरण भी हो सकेगा।
श्री झालानी ने पेंशन समस्या के निराकरण के लिए बनाई गई यह नायाब योजना 12 अक्टूबर 2015 को तत्कालीन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को प्रेषित की थी। अपने पत्र में श्री झालानी ने कहा था कि सरकार को एक विशेषज्ञ समिति बनाकर इस योजना की व्यावहारिकता ग्र्राह्यता, और क्रियान्वयन में आने वाली कठिनाईयों का अध्ययन करवा कर इसे लागू करने की दिशा में आगे बढना चाहिए ताकि पेंशन की टेंशन का पूरी तरह निराकरण हो सके।