बारवा अंक ’कहानी-रतलाम मेडिकल काॅलेज की…(गतांक से आगे)… (12)’
पिछले अंक में हमने देखा कि शहर मे मेडिकल काॅलेज की स्थापना की बरसों पुरानी मांग को मूर्त रूप देने के लिये कलेक्टर श्री श्रीवास्तव द्वारा की गई पहल रंग लाने लगी। शहर में इसके पक्ष में बयानों के दौर भी प्रारंभ हुआ।
कर्मचारी संघ का समर्थनः-इसी कड़ी में अब मध्यप्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष श्याम टेकवानी ने समस्त कर्मचारी एवं श्रमिक संगठनों की ओर से संयुक्त बयान प्रसारित कर कलेक्टर की पहल का स्वागत किया और संगठनों की ओर से काॅलेज स्थापना में हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।
स्थल चयन के अनेक प्रस्तावों पर विचार:-
अभी भी यह संशय बना हुआ था कि क्या सही में अस्पताल से दूर एन्फ्रास्ट्रक्सचर तैयार कर इसी अस्पताल से संबंधता रखकर उसे संचालित किया जाने पर क्या एम.सी.आई. अनुमति देगी। ऐसी दुविधापूर्ण स्थिति में काॅलेज स्थल चयन को लेकर के कई विकल्पों पर, न केवल प्रशासनिक हलके मे वरन् चिकित्सकीय वर्ग में व आमजन से कई तरह के सुझाव जनचर्चा के विषय रहे। विभिन्न सुझावों में से एक सुझाव आया कि जेल को शहर के बाहर शिफ्ट कर दिया जाए और हास्पीटल तथा जेल परिसर को मिला दिया जावे। दूसरा, मंडी प्रांगण पर निगाह गई वहां पर कोई विशेष भवन नहीं है- वह शहर के बाहर जा रही है और स्थान भी पर्याप्त रिक्त है अस्पताल के पास भी रहेगा। अतः यहां काॅलेज भवन बनाया जा सकता है। एक अन्य विकल्प हास्पीटल के सामने ही वर्तमान काॅलेज के भवन को पुनरोद्धार कर मेडिकल काॅलेज के भवनों के उपयोग कर लिया जाए और संचलित काॅलेज के लिये काॅलेज के विशाल प्रागंण मे वर्तमान कार्यालय से लगाकर गांधी उद्यान के पीछे वाली रिक्त पड़ी भूमि पर (जहां वर्तमान में गोल्ड काम्पलेक्स प्र्रस्तावित है) नए भवन बना कर उसे उस तरफ शिफ्ट कर दिया जाए। सागोद रोड और सालाखेड़ी क्षेत्र में भी कुछ भूमियां देखी गई। इस प्रकार के कई प्रस्ताव अस्पताल की समीपता, सुगम पहुंच और आवश्यक भूमि की पूर्ति के मापदण्डों को आधार बनाकर विचाराधीन चलते रहे।
तत्कालीन जेल भूमि रिकॉर्ड।
तत्कालीन कृषि मण्डी भूमि रिकॉर्ड।
जिलाधीश की पत्रकारों के साथ चर्चा:-
जिलाधीश की सारी दौड धूप वस्तुतः गैर सरकारी थी। इस कारण वे सरकारी स्तर के किसी भी अधिकृत जानकारी देने से अब तक बचते रहे। इस बात से अनभिज्ञ पत्रकारों ने अपने को उपेक्षित समझते हुए और तथ्यों को छुपाने तथा मेडिकल काॅलेज स्थापना के श्रेय लेने की होड़ में उन्हें दूर रखने का संदेश जा रहा था। और इसके कारण उनमें असंतोष उभर रहा था। इस नाराजगी की भनक कलेक्टर के कानों तक जब पहुंची तब उन्होंने यह सोचकर कि चलते काम में कोई अंड़गा नहीं आ जाए इसको गंभीरता से लिया व पत्रकारों को विश्वास में लेने के लिये विचार-विमर्श एवं सुझावों के नाम पर पत्रकारों की एक बैठक बुलाकर भ्रान्ति का पटाक्षेप किया। बैठक में जिलाधीश ने खुलासा किया कि वे चाहते है कि रतलाम में मेडिकल काॅलेज की स्थापना यहां के नागरिकों की रूचि से ही हो एवं इसमें यहां के नागरिकों का भी सहयोग लिया जाए, जिसमें शहर के दानदाता, व्यापारी, प्रतिष्ठान विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक ट्रस्ट सहित जो भी इस पुनीत कार्य मे भागीदारी करना चाहे वे आगे आकर मेडिकल काॅलेज की स्थापना में स्वप्रेरणा से अपना योगदान दें।
पत्रकारेां से चर्चा के दौरान यह सहमति बनी की यदि रतलाम में मेडिकल काॅलेज की स्थापना होती है, तो ना सिर्फ यहा विद्यार्थियेां के लिये ऐतिहासिक पहल होगी बल्कि नगर के विकास के द्वार भी इससे खुलेंगे एवं इसके साथ शिक्षा प्रसार एवं आर्थिक प्रगति में भी यह कदम मिल का पत्थर साबित होगा। जिलाधीश ने कहा कि काॅलेज की स्थापना के संबंध में बनाई जा रही कार्ययोजना में यदि पत्रकार भी जुड़ते हे तो यह बड़ी खुशी की बात होगी।
चर्चा के दौरान पत्रकारों के सुझाव के बाद यह सहमति भी बनी कि कालेज स्थापना की रूपरेखा बनाने एवं उसको अमलीजामा पहनाने के लिए एक कोर ग्रुप का गठन किया जाए जिसमें नगर के गणमान्य नागरिक उद्योग जगत से जुड़े लोग, समाजसेवी, ट्रस्ट के पदाधिकारी, पत्रकार, दानदाता, बुद्धिजीवी वर्ग की भी भागीदारी हो।
पत्रकारेां की रूचि को देखते हुए जिलाधीश ने कहा कि यदि मीडिया का इसमें सहयोग रहा तो शीघ्र ही शहर में मेडिकल कालेज स्थापना के लिये किये जा रहे प्रयास सार्थक दिखाई देने लगेंगे।
स्वामी बुद्धदेवजी का प्रवेश:-
मेडिकल कॉलेज की कवायद के इसी दौरान शिवकुमार जी झालानी ने यह बताया की तपस्वी संत श्री बुद्धदेव जी शिक्षा के क्षेत्र में कोई बड़ा कार्य करने की मंशा रखते हैं। उनके एनआरआई सहित कई गुजराती भक्तों से स्वामीजी इस कार्य में धनराशि लगवा सकते हैं। उनके इस सुझाव पर स्वामी बुद्धदेवजी से संपर्क कर प्रोजेक्ट में उनकी अग्रणी भूमिका के लिए उन्हें तैयार करने के विचार से कलेक्टर श्री श्रीवास्तव के मन में पूज्य गुरुदेव से मिलने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने महाराज श्री से भेंट करने हेतु अविलम्ब मुंबई जाने का मन बनाया।
दूसरी ओर अन्य समकक्ष शहरों की अपेक्षा रतलाम के शैक्षणिक विकास के पिछड़ापन को लेकर यहां कई प्रकार की बातें चल रही थी। इसी बात का आधार लेकर उन्होंने इप्का लेबोरेट्रीज के वाईस प्रेसिडेन्ट नागोरी जी को रतलाम में फार्मेसी कॉलेज खोलने की सुझाव दिया। इप्का के शीर्ष मेनेजमेंट तक खुलकर श्री नागोरी जी द्वारा यह सुझाव नहीं पहुंचा पाने की झीझक पर कलेक्टर साहब ने स्वयं मेनेजमेंट को शिक्षा के क्षेत्र में उतरने के लिये प्रेरित करने का बीड़ा उठाया। जब श्री श्रीवास्तव सब ने मुंबई जाने का मन बनाया तब श्री नागौरी जी के माध्यम से इप्का के अध्यक्ष श्री गोदाजी से मुंबई में मीटिंग अरेंज करी और उनके सामने रतलाम मे फार्मेसी कॉलेज खोलने की बात रखी। श्रीवास्तव साहब का सोंचना था कि फार्मेसी कालेज खोलने से जहां इप्का को अपने उद्योग में कुशल स्किल मिल सकेगा वही स्थानीय युवा काॅलेज से डिग्री लेकर अन्यत्र भी जाब करने का मार्ग खुलेगा। श्रीवास्तव साहब ने साथ ही मेडिकल काॅलेज खोले जाने की दशा में उद्योग समूह की ओर से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा भी की।
इसी के साथ एक दिन कलेक्टर साहब और हम अलग-अलग मुंबई पहुंचे। मुंबई में संत श्री बुद्धदेव जी महाराज से भेंट करने उनके बोरीवली में स्थित गौमूख आश्रम गए। शब्बीर भाई और मे (अनिल झालानी) दोनों सांताक्रूज से और कलेक्टर साहब, नागोरी साहब के साथ।
वहां पर महाराज श्री ने पूर्व से ही अपने कुछ भक्तों को आमंत्रित किया हुआ था। जहां एक छोटी सी प्रारंभिक बैठक श्रीवास्तव साहब ने बुद्धि देव जी को योजना की रूपरेखा प्रस्तुत करीं। वहां की चर्चा का सार निकाला की सारे प्रयासों से लगभग 10 करोड़ की प्रारंभिक राशि की व्यवस्था जैसे तैसे कर ली जाए। बुद्धदेव जी के लिये यह एकदम नया प्रस्ताव था। उनके लिये चिंतन का विषय था कि क्या वास्तव में वे अपने भक्तों से इतनी राशि जुटाने को सहमत कर पाएगें कि नहीं। फिर भी कुछ करने की ललक से बुद्धदेव जी ने स्वयं रतलाम आकर इस परियोजना को समझने का आश्वासन दिया।
इधर अखबारों में लगातार लेख प्रसारित होते रहे। इधर स्वामी बुद्धि देव जी के आगमन का बेसब्री से इंतजार हो रहा था। और अंततः 31 मई को स्वामीजी रतलाम पहुंचे तथा रतलाम पहुंचते ही उन्होंने मेडिकल कॉलेज प्रोजेक्ट को स्वयं अपनी ओर से गहराई से जाकर इसकी व्यवहारिक पहलुओं को समझने का प्रयास किया। इस हेतु उन्होंने रतलाम जिला चिकित्सालय को देखने की इच्छा जाहिर की।