दसवा अंक– कहानी-रतलाम मेडिकल काॅलेज की…(गंताक से आगे)... (10)’
हमने अपने पूर्व अंक में यह उल्लेख किया था कि कलेक्टर श्री जी.के. श्रीवास्तव के आने के बाद मेडिकल काॅलेज की स्थापना के प्रयासों में तेजी आई।
मेडिकल काॅलेज स्थापना के टर्निंग पाईन्ट के सूत्रधार पूर्व कलेक्टर श्री जी.के.श्रीवास्तव के मस्तिष्क में इसका संपूर्ण खाका पहले से ही बना हुआ था। कलेक्टर का चार्ज लेते ही उन्होंने इस प्रोजेक्ट को हाथ में लेकर तेजी से कार्रवाई प्रारंभ करी । ’श्री जी. के. श्रीवास्तव ’ ने अपने सम्पूर्ण पदस्थापना के कार्याकाल में इस शहर को यह सौगात दिलाने में रात-दिन अथक प्रयत्न किए।
रेडक्रास के पदाधिकारी एवं रोगी कल्याण समिति के सक्रिय सदस्य रहने के नाते हम उनके प्रयासों के प्रत्यक्ष साक्षी रहते हुए उनके मार्गदर्शन में समाजसेवकों की हैसियत से हमने जो कवायद की, उसी युक्ति की अवधारणा को मूर्तरूप देने के परिणामस्वरूप देश में प्रतिवर्ष 10000 डाॅक्टरों को शिक्षित करने का मार्ग खुला तथा आज रतलाम को इस मेडिकल काॅलेज की सौगात मिली है
सज्जन मिल गेस्ट हाउस पर श्री जी.के. श्रीवास्तव से प्रारंभिक भेट के दो-तीन दिन पश्चात कलेक्टर कार्यालय से हमारे पास एक फोन आया कि आपको कलेक्टर साहब याद कर रहे है। हमें समझ नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है। उनकी मेडिकल काॅलेज की रूचि के संबंध में तब तक आभास नहीं था। दोपहर का वक्त था। कुछ ही देर में तत्काल शब्बीर भाई और मैं(अनिल झालानी) कलेक्टर आॅफिस पहुंचे। वहां हमारा पहले से ही इंतजार हो रहा था। उत्सुकतावश हमसे श्रीवास्तव साहब ने जानना चाहा कि आप लोगों के पास मेडिकल काॅलेज से संबंधित आज तक की जो प्रोग्रेस हुई उसका क्या विवरण है। हमने उस तारीख तक के हमारे पास उपलब्ध पूर्व के प्रयासों से संबंधित संकलित जानकारियां थी, वे सब बताई।
चर्चा-चर्चा में आपने हमें बताया कि बिलासपुर में एडीशनल कलेक्टर रहते हुए उन्होंने मेडिकल काॅलेज प्रोजेक्ट पर बहुत काम किया है और वहां काॅलेज शुरू हो चुका है। रतलाम जिले का जिला चिकित्सालय 470 (लगभग 500) बिस्तरों का होने से यहां भी उसी माॅडल पर निश्चित रूप से मेडिकल काॅलेज बन सकता है, इसके लिए हमें प्रयास अवश्य करना चाहिए। उनका विचार था कि समाजिक संस्थाओं को साथ में लाकर मेडिकल काॅलेज की टीचिंग के लिए बिल्डिंग बना दी जाए और शासकीय अस्पताल का उन्नयन कर दिया जाए, तो कम से कम खर्च में शासकीय स्तर पर मेडिकल काॅलेज शुरू किया जा सकता है। ऐसा सुझाव मैंने केन्द्र शासन को भेजा है तथा सुश्री उमा भारती जी(तत्कालीन मुख्यमंत्री) से भी इस योजना पर चर्चा हुई है। हम यहां पर भी ऐसी योजना बनाकर कार्य करेगें। आप लोग इसके लिए तत्पर रहें।
ऐसा कहते हुए उन्होंने हमें यह सोंचकर जोत दिया कि ये बंदे भागा दौडी के लिए और उपरी कामों के लिए उपयोगी रहेंगे। कारण यह लगा कि प्रशासनिक स्तर पर हल्के-फुल्के मुद्दो को लेकर के शासकीय अधिकारियों को महज इस कार्य के लिए इधर-उधर ना तो दौड़ाया जा सकता था और न हीं इससे संबंधित कार्यों के लिए लंबी ड्यूटी पर लगाए जा सकता था। हम तो पहले से ही उत्साहित थे और इसके लिए प्रयास करते रहे थे। हमें इस काम में योगदान देने का जो सौभाग्य मिल रहा था उससे हम गदगद थे। उन्होंने हमें जो महत्व दिया हम भी उस पर खरे उतरना चाहते थे।
उन्होंने हमें डाॅ. छपरवाल साहब से मिलने के लिए इंदौर भेजा। वे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति थे। उनसे मिलने जब इंदौर गए तब वहीं पर डाॅ छपरवाल साहब ने हमें वही महात्मा गांधी मेडिकल काॅलेज इंदौर के डीन डाॅक्टर तनेजा के पास भेजा। हम उनके निवास पर जिलाधीश श्री जी के श्रीवास्तव के अधिकृत (किंतु अनाधिकृत) दूत बनकर मिले और रतलाम में मेडिकल काॅलेज की स्थापना के प्रयासों को ओर संभावनाओं को लेकर कलेक्टर श्रीवास्तव की फोन पर वही से आपस में चर्चा करवाई। श्रीवास्तव साहब ने डाॅक्टर तनेजा साहब को इस संबंध में विस्तृत चर्चा करने हेतु वह मार्गदर्शन देने हेतु रतलाम आने का आमंत्रण दिया, जिसे डाॅक्टर साहब ने आने का आश्वासन दिया। हम दोनो इंदौर तो गए हुए थे ही, उन दिनों अरविन्दों मेडिकल काॅलेज का निर्माण कार्य भी प्रगति पर था। लगे हाथ हमने हास्पिटल का अवलोकन कर समझने का प्रयास किया। एक दिन फिर समय निकालकर उज्जैन दीपचन्द्र गार्डी निजी मेडिकल काॅलेज जो शूरू शुरू ही हुआ था। वह भी जाकर देखा ओर कलेक्टर श्रीवास्तव साहब को उनके द्वारा चाही गई जानकारी जाकर उपलब्ध कराई।
इस बीच दैनिक भास्कर के किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में हमारे तीसरे साथी श्री सुशील नाहर 5 फरवरी 2004 के दिन दिल्ली में थे। उनको यहा कि प्रगति की जानकारी देते हुए हमने मेडिकल काॅलेज की स्थापना के आवेदन, मार्गदर्शिका नियमावली मापदंड इत्यादि से संबंधित पुस्तिकाएं मंगवाई। कोई अधिकृत संस्था न होने से उन्होंने रेडक्रास सोसायटी, रतलाम के नाम से यह पुस्तिकाएं मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया के नई दिल्ली स्थित मुख्यालय जाकर खरीदी और लेकर आए। यह हमारे पास आज भी सुरक्षित है।
श्री जी.के. श्रीवास्तव के प्रयासों में तेजी आई। सागर में उन दिनों नया-नया मेडिकल काॅलेज खुला था। वहां से वर्तमान मेडिकल काॅलेज की डीपीआर मंगवाई गई और उसके अनुरूप रतलाम का प्रोजेक्ट बनाने का कार्य प्रारम्भ हुआ। बतौर रेडक्रास के कार्यकर्ता रहते हमने सागर मेडिकल काॅलेज की तर्ज पर रतलाम मेडिकल काॅलेज की एक डीपीआर बनाने का कार्य शूरू करने में सहयोग दिया। जिसमें डाॅ.तापड़िया की ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। श्री जी.के. जैन तत्कालीन अतिरिक्त जिलाधीश को भी इसका तनिक अनुभव था। 1-2 महीने में डाॅ तापडिया की मेहनत से तैयार एक प्रारंभिक डीपीआर बनाकर हम सबने कलेक्टर महोदय को भेंट की। जावरा के विधायक डाॅ राजेन्द्र पाण्डेजी उस समय कलेक्टर कक्ष में मौजूद थे।
उससे उत्साहित होकर कलेक्टर महोदय ने अपने प्रयास और तेज कर दिए और जिले के सांसद एवं तत्कालीन एवं पूर्व विधायकों की एक बैठक बुलाई। क्रमशः