आठवा अंक कहानी-रतलाम मेडिकल काॅलेज की…(गंताक से आगे).. (8)’
रतलाम मेडिकल कॉलेज की स्थापना एक ज्वलंत मुद्दा शहर में बना रहा। विगत अंक में हमने पढ़ा कि कलेक्टर मनोज झालानी द्वारा फुलप्रूफ तैयारी उपरांत सभी संबंधित लोगों को आमंत्रित कर एक सुनियोजित और सुव्यवस्थित बैठक आयोजित करने से यह संदेश गया कि मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लिए ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। समाचार पत्रों में प्रमुखता से उस बैठक के प्रसारित समाचारों ने शहर में एक नई चर्चा के विषय को फिर से जन्म दिया।
इस बात को लेकर छुटपुट समाचार कई दिनों तक फॉलोअप के रूप में चलते रहे। जिससे लोगों को उम्मीद लगने लगी कि किसी न किसी रूप में शायद यह सपना साकार होने की दिशा में अग्रसर हो रहा है।
दूसरी ओर पहली ही बैठक में यह स्पष्ट हो चुका था कि सरकार सिर्फ भूमि आवंटित करेगी साथ-साथ अस्पताल के उपयोग व अन्य रियायतों की अनुमति ही दे सकेगी। किंतु भवन निर्माण व साधन-संसाधनों की व्यवस्था करने वाले किसी निजी संस्थान या ट्रस्ट आदि को आगे आकर मेडिकल कॉलेज बनाना पड़ेगा। सरकारी स्तर पर इतना व्यय करना और कॉलेज बनाना संभव नहीं हो सकेगा।
कलेक्टर मनोज झालानी द्वारा औचक रूप से मेडिकल काॅलेज की स्थापना का प्रोजेक्ट हाथ में लेने और इसके लिये पूरी तैयारी के साथ ताबडतौड बुलाई बैठक से इसका श्रेय लेने की ताक में बैठे नेताओं के सामने असमंजस की स्थिति बन चुकी थी। राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। रतलाम की सीट विपक्ष की झोली अर्थात भाजपा के पास थी। तिसरा श्रेय लेने वाले दानदाता पक्ष असहज हो चुके थे। सभी लोग इसकी स्थापना का श्रेय लेने के लिये अनुकुलता में अवसर की प्रतिक्षा में थे। इसी कारण कलेक्टर द्वारा बुलाई बैठक में गर्मजोशी की बजाए निरसता और अनिर्णय का वातावरण रहा। किसी निष्कर्ष पर नहीं पंहुचते हुए लीपापोती के लिये कोर कमेटी का गठन किया, जो कि निराशाजनक परन्तु सुखद अंत कर इति श्री हुई। इस दर्द की झलक कलेक्टर के अगले वक्तव्य में प्रकट हुई।
इधर आम जनता में कलेक्टर के कार्यों की सराहना होने लगी। जिला रतलाम अशासकीय स्कूल संचालक संघ के अध्यक्ष मोहनलाल जैन ने जिलाधीश महोदय के प्रयासों का स्वागत करते हुए अपने 09.05.99 के बयान में कहा कि शहर में मेडिकल कॉलेज तथा इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जाने की उच्च शिक्षा के अभिलाषी विद्यार्थियों की सर्वोच्च मांग है और इन सब के लिए प्रशासन एवं जनता को मिलकर प्रयास करना चाहिए तथा शिक्षा के क्षेत्र में जो रतलाम पिछड़ रहा है वह कमियां दूर कर उनकी पूर्ति की जावे।
इसी प्रकार पत्रकार श्री अजीत मेहता ने चौथा संसार दिनांक 10.05.99 में अपने नियमित स्तम्भ ‘घूमता आईना’ में कलेक्टर के हवाले से मेडिकल काॅलेज के लिये उनके द्वारा किये गए प्रयासों की विस्तार से जानकारी प्रकाशित करने केेे साथ-साथ उनके अन्य कार्यों की भी विवेचना करी।
10 जुलाई 1999 को जिलाधीश श्री मनोज झालानी का 1 वर्षीय कार्यकाल पूर्ण होने पर पत्रकारों द्वारा लिए गए साक्षात्कार में अन्य उपलब्धियों के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज स्थापना के प्रयासों की भी जानकारी दी। अपने साक्षात्कार के दौरान नवभारत के पत्रकार श्री रमेश जी लालवानी ने कलेक्टर श्री झालानी से हुई उनकी चर्चा का हवाला देते हुए श्री कलेक्टर झालानी ने बताया कि मेडिकल कॉलेज निजी क्षेत्र में ही खोला जाना संभव है। क्योंकि जनसहयोग से बना कर भेजा गया प्रस्ताव केंद्रीय चिकित्सा परिषद में स्वीकार नहीं किया है। उनका कहना है कि शहर में मेडिकल कॉलेज के लिए किए गए प्रयासों में ऑल इंडिया मेडिकल काउंसिल द्वारा जो मापदंड निर्धारित किए गए हैं, उसमें लगभग 20 करोड़ का खर्चा है। आपने बताया कि निजी क्षेत्र में ही मेडिकल कॉलेज खुलना संभव हो सकेगा। जन सहयोग से इतनी बड़ी राशि एकत्र करना और फिर उसको संचालन करने के लिए प्रबंधन समिति भी एक टेढ़ी खीर रहेगी।
फरवरी 2000 में नगर निगम की शिक्षा समिति के अध्यक्ष पार्षद राजेंद्र वर्मा ने जिलाधीश द्वारा मेडिकल कॉलेज के द्वारा लिये गए ठोस एवं प्रभावी प्रयास पर जोर देते हुए डोसी गांव में स्थित, राजपरिवार की जमीन को मेडिकल कॉलेज के लिए सुरक्षित रखने की बात कही। उन्होंने बोहरा समाज के आर्थिक सहयोग के लिए प्रयासों की चर्चा का जिक्र किया। महापौर पारस सकलेचा को सुझाव दिया कि मेयर इन काउंसिल के माध्यम से मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की जाए।
इस प्रकार चर्चा करते हुए मेडिकल कॉलेज का मुद्दा 1969 से प्रारंभ होकर 31 वर्ष की यात्रा कर नई 21वी सदी में प्रवेश कर चुका था।