छठवा अंक। कहानी-रतलाम मेडिकल काॅलेज की…(गंताक से आगे). (6)
गतांक 5वें में हमने पढ़ा था कि राजीव गांधी के द्वारा रोजगार मूलक एंव तकनीकी शिक्षण संस्थानों की कमी दूर कर शैक्षणिक संस्थानों का जाल फैलाने के निर्णय के पश्चात राज्य सरकारों द्वारा उसके अनुरूप नीतियां बनाना प्रारम्भ किया। संलग्न समाचार पत्रों की कतरने यह बताती है कि मध्यप्रदेश सरकार ने भी नए तकनीकी मेडिकल कालेजों को आमंत्रित करने के लिये प्रोत्साहन स्वरूप निशुल्क भूमि आवंटन की योजना कही। इसका अर्थ यही निकला जा सकता है कि केन्द्र और राज्य सरकारों के पास आर्थिक स्त्रोत इतने नहीं थे कि स्वयं अपने स्तर से काॅलेज डाले। इस हेतु निजी या सामाजिक संस्थाओं या ट्रस्टो को रियायते देकर उन्हें काॅलेज खोलने के लिए प्रेरित करने की प्रक्रिया अपनाई गई।
तत्कालीन विधायक शिवकुमार झालानी ने ट्रस्ट या सामाजिक संस्था गठन कर उस के माध्यम से मेडिकल कॉलेज की स्थापना के प्रयास प्रारंभ किए ।
रतलाम शहर में तत्कालीन समय में डोशीगांव स्थित राज परिवार की भूमि इस प्रकल्प हेतु दान देने की पहल करी पूर्व रियासत के राजकुमार रणवीर सिंह जी जो जर्मनी से उन दिनों भारत आए हुए थे उनसे भेंट कर 100 बीघा भूमि मेडिकल कॉलेज के लिए इस उद्देश्य से मांगी की उक्त भूमि मिलने मैं यदि सफल हुए तो कॉलेज के भवन हॉस्टल्स क्लासरूम्स इत्यादि के निर्माण के लिए अन्य लोगों से संपर्क स्थापित किया जा सकेगा।
रतलाम युवराज श्री रणबीर सिंह जी राठौर
इस बात की पुष्टि दिनांक 20 अक्टूबर 1997 तथा 30 नवंबर 1997 को राज्य शासन द्वारा जारी परिपत्र में प्रकाशित नीति निजी मेडिकल कॉलेज या संस्थाओं द्वारा निर्मित किए जाने वाले मेडिकल कॉलेज को अन्य राज्यों के साथ-साथ निशुल्क भूमि आवंटन करने की नीति प्रोत्साहन की दृष्टि से बनाई गई
मुख्य आधार यह था की राज्य शासन द्वारा निजी मेडिकल कॉलेज स्थापना पर जोर दिया जा रहा था क्योंकि शासकीय स्तर पर मेडिकल कॉलेज की स्थापना एक खर्चीला उपक्रम था। जो शासन के बूते का नहीं था। अतः शासन द्वारा भूमि तथा अन्य रियासतों के माध्यम से निजी क्षेत्र को इसमें आमंत्रित करने के लिए प्रोत्साहन की नीति बनाने जा रही थी
अंततः दिनांक अगस्त 1998 में संशोधित नीति पारित कर लोगों से मेडिकल कॉलेज की स्थापना हेतु प्रस्ताव आमंत्रित किए गए।
इसी कड़ी में स्थान्तरित होकर आये नवागत कलेक्टर श्री मनोज झालानी ने उन दिनों मेडिकल कॉलेज चर्चा का विषय बन चुके एवं जन अपेक्षाओं को दृष्टिगत रखते हुए एक बैठक दिनांक 8 मई 1999 को रतलाम के सभी प्रबुद्ध जनों, राजनितिक दलों के नेताओं, जन प्रतिनिधियों एवं उद्योगपतियों को आमंत्रित कर इसकी संभावनाओं को तलाशने हेतु आयोजित की।
इस प्रकार इस कहानी को हम 1969-70 से 1998-99 तक ले कर आ गए हैं। क्रमशः