पांचवा अंक,कहानी-रतलाम मेडिकल काॅलेज की…(गतांक से आगे).… (5)
वैसे तो मेडिकल कालेज की स्थापना 80-90 के दशक में दिवस्वपन व लगभग असम्भव ही था।
प्रधानमंत्री स्व राजीव गांधी द्वारा तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के द्वार सबके लिये खोलने की नीति की घोषणा के पश्चात 1994 में रोजगारमूलक शिक्षा नीति बनी। इस नीति के फलस्वरूप देश भर मे शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना का विकास चक्र चला। केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी समय की मांग के अनुरूप शिक्षण संस्थानों की स्थापना की नीतियां बदलने का उपक्रम किया। परिणामतः आसपास के हर बड़े से लगाकर मझले शहरों मे उच्च शिक्षण के केन्द्रों की स्थापना की गतिविधियां प्रारम्भ होने लगी। जिसमें रतलाम में मेडिकल काॅलेज खुलने के आसार जन्म लेने लगे। किन्तु रतलाम का दुर्भाग्य रहा कि यहां की विधानसभा सीट अधिकांश समय सरकार के उलट विपक्ष की झोली में रही। अतः न तो स्थानीय जनप्रतिनिधी पर कोई दबाव रहा और न ही सरकारों के द्वारा शहर के शैक्षणिक विकास की तरफ ध्यान दिया गया।
इससे दुःखी और पीड़ित होकर 25 मार्च 1996 को कुछ छात्र नेताओं ने जिनमें काॅलेज के महासचिव रजक बोराना तथा पंकज राठी, सचिन मेहता, रितेश पोरवाल, पवन मकवाना विश्वास चैहान, विशाल शाह, दिलीप भंडारी, निलेश कोठारी उत्कर्ष शर्मा, प्रफुल्ल कुमावत, नीरज शर्मा, शिवेन्द्र दुबे, दीपक मिश्रा, अभिसार हाडा, प्रवीण व्यास, राजेश उपाध्याय, निलेश मूणत, अनुभव उपाध्याय, कमल माहेश्वरी, अमित मित्तल, प्रशांत जायसवाल आदि, शामिल रहे।रतलाम की शिक्षा के क्षेत्र मे लगातार उपेक्षा का आरोप लगाया। उन्होंने तकनीकी शिक्षा संस्थानों की स्थापना की जोरदार मांग करते हुए लोगों को इसके लिये आगे आने का आव्हान किया। बहुत दिनों बाद एक बार फिर मेडिकल कालेज के लिये आवाज उठाई गई।
इधर प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी, नए शिक्षण संस्थानों के लिये सरकार मे नीति बनाना प्रारंभ किया। रतलाम के तत्कालीन विधायक श्री शिवकुमार झालानी के पास रतलाम के विकास का स्वपन तो था ही, इच्छा भी थी और जुनून भी था परन्तु उनकी विधायकी का लम्बा समय अपनी पार्टी की आन्तरिक राजनीति खींचतान और उलझन मे गुर्जर गया।
अपने 3 साल की विधायकी कार्यकाल मे रतलाम शहर के विकास के लिये अपने प्राथमिक प्रयासों की जानकारी देने के लिये 13 जनवरी 1997 के दिन बुलाई गई प्रेस क्रान्फ्रेस मे श्री झालानी ने लम्बे बाद मेडिकल काॅलेज के लिये उनके द्वारा प्रारम्भ किये गए प्रयासों की बात कहकर मुद्दा फिर गर्म किया और आशा के नए बीज बौए।
श्री शिवकुमार झालानी ने अपनी प्रेस वार्ता के अंतर्गत बताया कि राज्य शासन निजी क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज में हेतु तैयार हो गया है । अब शहर के नागरिकों उद्योगपतियों तथा अन्य ट्रस्टों के सहयोग के माध्यम से रुपया जमा कराने के लिए प्रयासरत हैं।
उक्त समाचार के पश्चात शहर मे पुनः सुगबुगाहट पैदा हुई। अन्य विषयों के प्रयास के साथ-साथ इन्ही दिनो मेडिकल कॉलेज के लिये अपने स्थानीय स्तर पर पहल बढ़ाने की कड़ी में शहर के जनप्रतिनिधियों, नेताओं, चिकित्सकों, शिक्षाविदों एवं वरिष्ठ पत्रकारों एवं प्रबुद्ध नागरिको की एक बैठक आट्टूत करने का निर्णय लिया। उस समय श्री शिवप्रकाश गुप्ता कलेक्टर थे।
इस बैठक मे आमंत्रितों के नाम श्री शिवकुमार झालानी ने स्वयं अपनी कलम से लिखे। कितनी शालीनता, गरिमा और मर्यादित थी उस समय की राजनीति में जब सर्वप्रथम अपने से राजनीति में बहुत कनिष्ठ-तत्कालीन नगर निगम महापौर श्री ज्यन्तिलाल पोपी का नाम अपने विधायक रहते हुए भी शिष्टता के नाते अपने नाम से पहले लिखा। फिर स्वयं (विधायक) का नाम, फिर पूर्व विधायक अपने राजनैतिक प्रतिद्वन्दी हिम्मत कोठारी, नरेन्द्र सिंह पुरोहित, अनिल झालानी, बेरिस्टर अब्बासी, अध्यक्ष/प्रभारी मंडी कमेटी टेम्पटन अंकलेसरिया , सुरेन्द्र पोरवाल, (शब्बीर) डासन, नागोरी (इप्का), मोहन व्यास (नईदुनिया), सुशील नाहर (भास्कर), दिलीप पाटनी, (प्रेस) शरद जोशी, (नागरिक बैंकं), प्रो.डाॅ (जयकुमार) जलज, डाॅ मेेहरा,डाॅ सैय्यद, डाॅ माहेश्वरी, प्राचार्य, सभी शासकीय महाविद्यालय, चेतन्य कश्यप , डाॅ एस. के शर्मा, हरदयाल सिंह, कोच्चट्टा सा.लाॅ.काॅलेज बोर्ड के नाम, बैठन मे बुलाने हेतु प्रस्तावित किये गए। यह बैठक उस समय किसी आकस्मिक घटनाक्रम घटित होने से होते होते टल गई। परन्तु अब यह फिर से रतलाम विकास से जुड़ा एक मुद्दा बन गया।