चौथा अंक, कहानी-रतलाम मेडिकल काॅलेज की...(गतांक से आगे). (4)
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सितंबर माह में मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ला अं शिक्षा मंत्री श्री जगदीश नारायण अवस्थी, कृषि मंत्री श्री भागवत साहू सूचना प्रकाशन राज्यमंत्री श्री बालकवि बैरागी सहित रतलाम आए। चारों मंत्री तथा डाॅ देवी सिंह जी मुख्य मार्गो से खुली जीप में जनता का अभिवादन करते हुए नगर भ्रमण किया। जनता ने चैराहे-चैराहे पर गर्म जोशी एवं बड़े उत्साह से इनका स्वागत किया। उसी दिन शाम को काॅलेज परिसर में ही मुख्यमंत्रीजी की एक विशाल आमसभा हुई। जिज्ञासा और उम्मीद के साथ पूरा शहर उमड़ा। सरकार ने मेडिकल कॉलेज छोड़ अन्य मांगो को आंशिक रूप से स्वीकार करने की घोषणा की।
नेतृत्व में बिखराव-
चूंकि बीच आंदोलन में पहले ही फुट पड़ चुकी थी। श्री कोमलसिंह जी के नेतृत्व में एक गर्म गुट बन गया था। यह गुट उस दिन मंत्रियों द्वारा की जाने वाली घोषणा और आश्वासनों से संतुष्ठ नहीं हुआ। बताया जाता है कि श्री राठौर ने बीच सभा में मंच पर चढते हुए अपना आक्रोश व्यक्त किया। उनकी इस अनुशासनहीनता पर पुलिस द्वारा श्री कोमलसिंह राठौर, घीसूजी शर्मा, सुभाष शर्मा, मधुकर वर्मा (पूर्व महापौर इंदौर), सुशील झालानी, श्री आजाद आदि की गिरफ्तारी कर हथकड़ी पहनाते हुए जावरा ले जाया गया। अग्रणी छात्र नेता श्री राधेश्याम शर्मा एवं श्री राजेन्द्र व्यास आदि का भी इन्हें समर्थन था।
युवाओं को यह आंदोलन तत्कालीन राजनीति के धुरंधरों की फूट की भेट चढ़ गया और आंदोलनकारी युवाओं को दो राजनैतिक गुटों मे बांट दिया। शहर को इस आंदोलन से कई नये नेता मिले परन्तु मेडिकल काॅलेज लंबे समय के लिये ठंडे बस्ते में चला गया। इस आंदोलन का तत्काल तो कोई लाभ नहीं मिला पर रतलाम की जनता में विकास की भूख और उपेक्षा के भाव सदा के लिये जागृत कर गया।
औद्योगिक विकास शूरू-
1971 में पाकिस्ता युद्ध के बाद लोकसभा के मध्यावद्धि चुनाव, 1972 में विधानसभा चुनाव, 1974 में अंतिम नगर पालिका के चुनाव और 1977 में इमरजेंसी के बाद के चुनावों, में भिन्न भिन्न विषय हावी रहें। इस बीच 1972 में मुख्यमंत्री श्री प्रकाशचन्द्र जी सेठी के कार्यकाल मे रतलाम औद्योगिक दृष्टि से पिछडे जिलो की केन्द्रीय सरकार की औद्योगिक नीति की ‘‘सी’’ श्रेणी में सम्मिलित किया गया।
इसके सुखद परिणाम स्वरूप रतलाम में अनेक उद्योग जिनमें प्रमुख सुनिता विटामिन्स (बाद में जयन्त विटामिन्स) माॅडेला स्टील्स, मेहता इस्पात(मरडिया), महेश्वरी प्रोटीन्स, सज्जन केमिकल्स(इम्पेक्स), परफेक्ट केमिकल एवं सेनिटरी वेअर्स, सिरेमिक्स, हाईटेक ड्रग्स, बोरदिया केमिकल्स, खेतान एग्रो, कार्तिक साल्वेक्स अल्कोहल बीयर प्लांट,व्यक्टेश जीनिंग, एरन जीनिंग, मालवा आॅक्सीजन, शाबा केमिकल्स, हिन्दुस्तान सिरेमिक्स, इप्का लेबोरेटरी, श्री राम गु्रप, माॅडल ग्रुप और कटारिया ग्रुप की विभिन्न इकाईयों जैसे अनेक उद्योगों के साथ-साथ कापर वायर एवं प्लास्टिक रोप की पचासों छोटी बडी रोजगार आधरित इकाईया स्थापित हुई। जिनसे शहर का आर्थिक च्रक तेजी से चला ओर उद्योंगों संचालित रहने वाले समय तक शहर को एक उच्च स्तरीय सुशिक्षित एवं संभ्रान्त प्रबंधकीय वर्ग का सानिध्य मिला परन्तु अधिकांश उद्योगों के बंद हो जाने से शहर अब उस वर्ग वंचित है।
अलंबत्ता इस दौरान शहर को मांगल्य मंदिर के रूप में एक राष्यव्यापी पहचान की सौगात मिली।
मेडिकल काउन्सिल की गाईडलाईन बाधक बनी-
मेडिकल काॅलेज एक दुलर्भ स्वप्न की तरह बन चुका था तथा मेडिकल काउंसिल की काॅलेज के लिये मान्यता देने हेतु जो आवश्यक प्रावधान, अर्हताएं एवं नियमों की पूर्ति, कालेज स्थापना हेतु पात्रता तथा अत्यधिक लागत और सरकार की वित्तीय स्थिति से सब अवगत थे।
अतः अब कोई इसकी जोर शोर से मांग नहीं कर रहा। सिर्फ यह एक चुनावी शगूफा बन कर रह गया। सभी राजनैतिक दलों की घोषणा पत्रों में इस बिन्दु का स्थान सदा के लिये सुरक्षित हो गया।
समय के साथ मुद्दे बदल गए-
अब जनता की मांग के मुद्दे की प्राथमिकता बदल गई। पेयजल योजना(ढोलावाड प्रथम एवं द्वितीय चरण), औद्योगिक विकास हेतु अनुदान, टाउन हाॅल, स्वीमिंग पूल, स्टेडियम, गल्र्स काॅलेज, काॅमर्स काॅलेज, नवीन उद्योग की मांग, सज्जन मिल सहित अन्य बंद होते उद्योग, बाल चिकित्सालय, रेल सुविधाओं आदि की बीच बीच में समय-समय पर चर्चाए चलती रही। चर्चाए होती रही।
इसके बाद भी मेडिकल काॅलेज की आग ठंडी नहीं हुई। अपने-अपने तरीकों से प्रयास चलता रहा। टुकडो-टुकडों मे यह मुद्दा जनता के सामने आता-जाता रहा। नगर की मांग पर …